शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

कविता -रतन जैन

रात अँधेरी पथ पर बैठा दीपक लेकर कौन?
नहीं हाथ को हाथ सूझता कज्जल्मय भू-व्योम!
अट्टहास कर उठा प्रभंजन ,लुप्त तारका हास
दरक उठे पहाड़ हुए इति दीपों के उच्छ्वास!
पर कैसी इस प्रलयकाल में स्वर्ण वर्तिका मौन!
बहुत प्रयास किये जन्झा ने पर न बुझा यह दीप
आहतभागी मान गर्विता होकर अति भयभीत।
लिए कौन ये विजय रश्मियाँ भगा रहा तमतौम
रतन जैन

1 टिप्पणी: