रात अँधेरी पथ पर बैठा दीपक लेकर कौन?
नहीं हाथ को हाथ सूझता कज्जल्मय भू-व्योम!
अट्टहास कर उठा प्रभंजन ,लुप्त तारका हास
दरक उठे पहाड़ हुए इति दीपों के उच्छ्वास!
पर कैसी इस प्रलयकाल में स्वर्ण वर्तिका मौन!
बहुत प्रयास किये जन्झा ने पर न बुझा यह दीप
आहतभागी मान गर्विता होकर अति भयभीत।
लिए कौन ये विजय रश्मियाँ भगा रहा तमतौम
रतन जैन
शुक्रवार, 22 जुलाई 2011
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Gehri Samvedna...Adbhut Shabd-shakti evam bhavnaon ka parichay milta hai well written. badhai.
जवाब देंहटाएंKunwar Preetam
Kolkata